गुरुवार, 14 जनवरी 2010

14
जनवरी

इक तुम्ही हो...

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इक तुम्ही हो जिसने सहेजा है मुझे ...
वरना बिखरने में देर कितनी लगती है ??? ...

2 Response to इक तुम्ही हो...

15 जनवरी 2010 को 1:58 am बजे

यहाँ कौन किसको सहेजता है यार...
सबकी नज़र मेरे सहेजे साँसों पर है..!!!
तुम अपनी साख बचा लेना,
मेरा दारोमदार तो अंधेरी राहों पर है..!!!

16 मई 2010 को 11:08 pm बजे

विश्वास की रचना ।