शनिवार, 14 अगस्त 2010

जिंदगी और मोम ...

1






जिंदगी के सारे सपनों का मोम ,
सारे रिश्ते की जमावट
तो कब की पिघल चुकी थी ।
बस रह गया था तुम्हारे साथ का इक धागा
जो जलाए रखा था जीवन की लौ
लो
आज वो भी बुझ गया
कुछ अवशेष सा जम गया मेज पर
जिसे वक्त खुरच-खुरच के साफ़ कर डालेगा ।
फिर ...???

1 Response to जिंदगी और मोम ...

20 अगस्त 2010 को 12:15 am बजे

फिर क्या...?

कहीं से कोई और बयार जरूर चलेगी...कोई शैतान कहीं जरूर कुछ लिख रहा होगा ..!