बुधवार, 18 अगस्त 2010

........गुलज़ार के नाम .....

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(आज गुलज़ार साहब का जन्मदिन है ...उनपे कुछ लिखना पहली प्रेमिका को पहला ख़त लिखने जैसा है ...फिर भी जैसा की मेरे लिए मेरा ब्लॉग मन में उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बरसने के लिए एक जमीं जैसा है...जिसपे कुछ गोंज लेता हूँ...आज एक और कोशिश ...)
तुम जो कह दो तो
चाँद आज की क्या?
किसी भी रात नहीं डूबेगा;
जागेगा सारी रात तुम्हारी निम्मी -निम्मी नज्मों जैसा ।
बेसुवादी रतियों में भी
तुम दिखा जो देते हो चाँद के अक्स में
रोटी, कभी चिकना साबुन ,
कभी माँ ;कभी महबूबा ।
तुम्हारा कुछ न कुछ सामान पड़ा है उनके पास
जो पस्मीनें की रातों में
प्यार के कुछ लम्हें फिलहाल जी लेना चाहतें हैं।
तुम्हारे प्यार के पत्ते झर भी जाएँ
पर उनकी खुशबू कभी चुप नहीं होती।
कभी तो खुद रांझा बन जाती है;
पर्सनल से सवाल करती है;
इश्क का नमक बन जाती है;
कभी नीम तो कभी शहद बन जाती है ।
उम्र भले ही पक के सुफैद हो गयी हो
पर महसूसने पे तो यही लगता है
दिल तो बच्चा है जी ...

1 Response to ........गुलज़ार के नाम .....

20 अगस्त 2010 को 12:10 am बजे

उनपे कुछ लिखना पहली प्रेमिका को पहला ख़त लिखने जैसा है...अहा..मानता हूँ..!सुशील भाई..इसे पढ़कर शायद सबसे ज्यादा खुशी खुद गुलज़ार साहब को होगी..वाकई..इतना प्यारा तोहफा कुछ ही लोगों ने दिया होगा उन्हें..! हर नज्म में जो गुलज़ार साहब एक अपना नया अक्षर/वाक्य/विन्यास सिरजते हैं साहब उन तारों के सिरों को क्या खूब पिरोया है आपने मासा S अल्ला..! गुलज़ार के बिम्बों से उन्हें ही नवाजना..कितना रोमांचक है ये..और कितना गहरा विश्वास है रचनाकार को अपने कथ्य पर की वो यूँ शरू करता है अपनी लाइनें..:"तुम जो कह दो तो
चाँद आज की क्या?
किसी भी रात नहीं डूबेगा;
जागेगा सारी रात तुम्हारी निम्मी -निम्मी नज्मों जैसा ।"

अब ये देखिये..जाने कितने अनगिन लोगों के लिए सुशील भाई आपने लिखा है ये..: "तुम्हारा कुछ न कुछ सामान पड़ा है उनके पास
जो पस्मीनें की रातों में
प्यार के कुछ लम्हें फिलहाल जी लेना चाहतें हैं।"

वैसे आप तो पुरे बच्चे हो जी...!
बेहद शानदार शुभकामनायें उकेर दी आपने सम्पूर्ण साहब के लिए...!