शनिवार, 15 अगस्त 2009
ये कहा आ गएँ हैं हम ; यूँ ही साथ-साथ चलते ......
6बड़ी दिलकश लगती है ये लाइन ...हम साथ -साथ गुनगुनाने भी लगते हैं । ज़रा गुनगुनाने की बजाय आज इस पर गौर करें ...आख़िर एक और मौका मिला है ;जब देशभक्ति की उमंगे हिलोरें ले रही हैं। साथ- साथ चलते हम अलग-अलग नही चलने लगे हैं? अभी कुछ ही दिनों पहले देश की राजधानी के उस इलाके का वाकया है, जहाँ देश के सबसे शिक्षित और आगे देश का प्रशासन सँभालने जा रहे युवाओं का हुजूम रहता है । बात शुरू हुयी दिल्ली के 'स्थानीय निवासी "(जब की दिल्ली में सब बाहर से ही आयें हैं ...) एक सरदार जी और "बाहर " (सुविधा के लिए बिहार पढ़ लें ) से आए एक युवा से । मोबाइल की कोई बात लेकर सरदार जी की ही मोबाइल शॉप पे दोनों (लोकल और बाहरी ) में कुछ कहा सुनी हो गई। सरदार जी जन्मजात तकिया कलाम 'तेरी भैन की...' से शुरू हुए और "बाहरी " जी के सर फोड़ने तक रुके नही। इधर "बाहरी " जी के जन्म से अर्जित नेतृत्व के गुण के कारण उनके समर्थक भी जुट गए। फ़िर क्या ..... नारा ; धरना ; भाषण । भाषण में बात इस हद तक पहुच गई कि कई दिनों कि भड़ास भी निकल गई। वक्ता ने कहा कि ; "हम यहीं यू पी - बिहार के होके बाहरी और बिहारी हो गए और ये ...... पाकिस्तान से आ के हिन्दुस्तानी हो गए " इस तरह एक जोशीले भाषण की समाप्ति पुलिस के लाठिओं से हुयी....
काश कोई "चिंका " भी रहा होता। जी हाँ ...अभी तक यू पी और दिल्ली की बात थी । अब ज़रा देश के पूर्वोत्तर भाग में चलें। पूर्वोत्तर से आए लड़के -लड़कियां यहाँ "चिंका -चिंकी " के नाम से जाने जाते हैं। उन्हें भी अक्सर "बाहरी" ही समझा जाता है। ............तो कहिये अभी जब की "मराठी मानुष और बिहारी भईया " के बीच का दंगल ख़त्म हुए कुछ ही दिन हुए और जिसकी एक झलक "कमीने " फ़िल्म में देख सकते हैं। तो क्यों न गायें देश की आजादी की इस साल गिरह पे ....."ये कहाँ आ गए हम.............????????????"
मोबाइल की बात पे मार-पीट से एक "आईडिया आया सर जी " ...जहाँ तक मेरी जानकारी है कि आप के मोबाइल पे कल कोई ऐसा एस एम् एस नहीं आया होगा जिसमें लिखा रहा हो कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पे एस एम् एस करने पे कोई प्लान काम नही करेगा और सामान्य दर ही लागू होगा॥ पता है उनको भी कि वैलेंटाइन डे ,फ्रेंडशिप डे, हैप्पी न्यू इयर ....वगैरा तो है नही। तो कोई कितना एस एम् एस करेगा ? अरे बहुत होगा तो वही तीन लाईनों वाला पिक्चर मैसेज जो तिरंगा होने का गुमां करता है वही फॉरवर्ड किया जाएगा...
बहुत हुयी खिचाई....अब नही....जाते -जाते बस एक बात ........अब हमें बलिदान देने कि ज़रूरत नही क्योंकि जो बलिदान कर गए वो लोग और थे ....अब बस योगदान करने कि जरूरत है ....जो आज़ादी मिली है उसे सहेजने -सँभालने कि ज़रूरत है..... नहीं तो देश भारत और पाकिस्तान के हुक्मरानों कि तरह हम भी अफ़सोस के सिवा कुछ नया नहीं करने जा रहे .............
"यार हम दोनों को ये दुश्मनी महंगी पड़ी,
रोटियों का खर्च बन्दूक पे होने लगा। "
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 Response to ये कहा आ गएँ हैं हम ; यूँ ही साथ-साथ चलते ......
va bhai maja aa gaya,,,,,really bahut sundar likha bhai, gajab ka pravah....us puri ghatna ko kya khub nationalism ki chashni me duba ke kharoch ko ubhar diya hai,,,,,itihas ki gambhirta aur sam-samyikta ki prasangikta ke sath......great.......abhinav bhaiya to dang rah jayenge ye padkar........vow............become overwhelmed...yaar.
"हम यहीं यू पी - बिहार के होके बाहरी और बिहारी हो गए और ये ...... पाकिस्तान से आ के हिन्दुस्तानी हो गए "
आज कल ये ही हो रहा है, ये देश का बेड़ा गर्क करने की तैयारी है
ये सोच कब पैदा होगी की सारे भारतवासी है,
सुशील जी।
इस बढ़िया लेख के लिए बधाई!
कल सोंमवार को आप इसकी चर्चा निम्न लिंक पर भी देखेंगे।
http://anand.pankajit.com/
कृपया शब्द पुष्टिकरण हटा दें।
टिप्पणी करने में अनावश्यक विलम्ब होता है।
व्यग्य की धार के साथ सोचने को विवश करता बहुत सार्थक आलेख ...शुभकामनायें ..!!
मयंक जी को आभार, सुशील जी काफी दिनों से लिखते रहे हैं और हर बार अच्छा ही लिखते हैं...सुशील जी को भी बधाइयाँ....
असल बात कोई नहीं समझता ........... हम सभी भारतीय नहीं बनना चाहते ........ पंजाबी, मराठी, बिहारी बनना चाहते हैं ......
एक टिप्पणी भेजें