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शनिवार, 11 सितंबर 2010

गहरे समन्दर के किनारे खड़ी एक इमारत....

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गहरे समन्दर के किनारे
खड़ी एक इमारत.
जिसने देखी है..
एक हुकूमत की दोपहरी और सांझ .
पनाह दी है ...
लथपथ कबूतरों को
93...26 /11 के नम्बरों के साथ .
शामिल है...
पहली मुलाक़ात की तस्वीरों में.
लौटते देखा है...
खाली हाथों को.
दिखाया है...
दूर से ख्वाबों का ऐसगाह.
साबित हुआ है...
पास से सपनों की कब्रगाह.
......और भी बहुत कुछ
जो समंदर के उस पार छिपा है
भविष्य के धुधलके में.
जिसका आना;
किनारे लगना;
अभी बाकी है.....