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जिंदगी के सारे सपनों का मोम ,
सारे रिश्ते की जमावट
तो कब की पिघल चुकी थी ।
बस रह गया था तुम्हारे साथ का इक धागा
जो जलाए रखा था जीवन की लौ
लो
आज वो भी बुझ गया
कुछ अवशेष सा जम गया मेज पर
जिसे वक्त खुरच-खुरच के साफ़ कर डालेगा ।
फिर ...???
शनिवार, 14 अगस्त 2010
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1 Response to जिंदगी और मोम ...
फिर क्या...?
कहीं से कोई और बयार जरूर चलेगी...कोई शैतान कहीं जरूर कुछ लिख रहा होगा ..!
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