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जिंदगी के चूल्हे पर
तुम्हारे साथ की तपिश से
प्यार का दूध अभी उफना ही था
कि
तुमने हाथ झटक चूल्हा ही बुझा दिया
और रख दिया तर्क का ढक्कन
कि ...
नहीं तो सारा दूध उफन जाता ;
सच कहना
आखिर किसका तुम्हे डर था ?
मेरे प्यार के उफान का ,
तुम्हारे हाथ के जल जाने का,
दाग लग जाने का.
6 Response to दूध, दाग और प्यार...
kavita acchi haen
kisi aur patili mae kuch aur he pak raha tha k pratik ne shama band diya hai ... badhai ho sundar rachna hai,,,,
रचना जी और राहुल भाई आप दोनों को शुक्रिया ....ऐसे ही बर्दास्त करते रहिये
"किसी और पतीली में कुछ और ही.."
कई बार ये सच होता है..कई बार ये हो रहा होता है..और लगभग हर बार ये भीतर कहीं घट रहा होता है..!
क्या आप इसको फाके बुक पर शेयर करने का butten बना सकते हैं?
ओह! बातों बातों मे क्या बात कह दी ... बहुत अच्छी रचना मै इसे बुकमार्क करता हूँ ... बधाई
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